June 2020

पुरुष के लिए सफलता कोई विकल्प नही है।
यह उसके लिए जीवन और मरण का सवाल है।
सफलता में भी सरकारी मुहर को ही मान्यता है।
बिना सफलता प्राप्त किये पुरुष को पुरुष नहीं माना जाता। स्वयं एक स्त्री भी उसे स्वीकार नहीं करती।
कोई क्यूँ एक बेरोजगार को अपनी बेटी नहीं देता।
परंतु जैसे ही वह रोजगार प्राप्ति करता है।
घर के सामने लड़कियों की लाइन खड़ी होती है।
समाज और लोगों के लिए भी ये बात कोई मायने नहीं रखती।
खैर क्या सोचता हूं मैं भी पुरुषों की तो ये जिम्मेदारी है..!!

#अभी

जीवन की महाभारत में एक के
बाद एक लक्ष्य साधते हुए
अर्जुन समझ रहा था मैं खुद को‌
सोचा बस अब तो श्री कृष्ण से
ज्ञान पाना बाकी है
एका एक याद आया
निहत्था अभिमन्यु हूं मैं तो
और अभी तो मेरा
चक्रव्यूह में फंसना बाकी है..!!

#अभी

हाँ, मैंने देखा हैं

हाँ, मैंने देखा हैं.....

दिन को रात होते देखा हैं,
ख़ुद को अनाथ होते देखा हैं।
आगामी वक़्त की फ़िक्र में,
मैंने कल को आज होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

इंसानों को जल कर राख़ होते देखा हैं,
रिश्तों में सबकुछ ख़ाक होते देखा हैं।
थोड़े से ज़िक्र के लिए,
मैंने बच्चों को गुस्ताख़ होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

हरे-भरे बागों को विरान होते देखा हैं,
चलती-फिरती राहों को सुनसान होते देखा हैं।
उस क़यामत से भरे शब-ए-हिज्र में,
मैंने भरी-पूरी बस्ती को श्मशान होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

घर को बदल कर मकान होते देखा हैं,
अपनों को अपने लिए अनजान होते देखा हैं,
उम्रभर रहा मैं तलाश-ए-खिज्र में,
मैंने मद्दतगारो में भी गुमान होते देखा हैं।।
हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपनों के फ़रेब से अनबन होते देखा हैं,
ज़िस्म के लिबाज़ को कफ़न होते देखा हैं,
कईयों की इस जन्नत-ए-फ़िक्र में,
मैंने रूह को घुल कर दफ़न होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपने ख़्वाबों को मैंने अतीत होते देखा हैं,
ख़ुद में ख़ुद के भय का प्रतीत होते देखा हैं,
हसरत थी 'मोहित' तेरे जिक्र की,
मैंने पल-पल अपने मौत को घटित होते देखा है।।

~मोhit_Iyer

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