हाँ, मैंने देखा हैं

हाँ, मैंने देखा हैं

हाँ, मैंने देखा हैं.....

दिन को रात होते देखा हैं,
ख़ुद को अनाथ होते देखा हैं।
आगामी वक़्त की फ़िक्र में,
मैंने कल को आज होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

इंसानों को जल कर राख़ होते देखा हैं,
रिश्तों में सबकुछ ख़ाक होते देखा हैं।
थोड़े से ज़िक्र के लिए,
मैंने बच्चों को गुस्ताख़ होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

हरे-भरे बागों को विरान होते देखा हैं,
चलती-फिरती राहों को सुनसान होते देखा हैं।
उस क़यामत से भरे शब-ए-हिज्र में,
मैंने भरी-पूरी बस्ती को श्मशान होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

घर को बदल कर मकान होते देखा हैं,
अपनों को अपने लिए अनजान होते देखा हैं,
उम्रभर रहा मैं तलाश-ए-खिज्र में,
मैंने मद्दतगारो में भी गुमान होते देखा हैं।।
हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपनों के फ़रेब से अनबन होते देखा हैं,
ज़िस्म के लिबाज़ को कफ़न होते देखा हैं,
कईयों की इस जन्नत-ए-फ़िक्र में,
मैंने रूह को घुल कर दफ़न होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपने ख़्वाबों को मैंने अतीत होते देखा हैं,
ख़ुद में ख़ुद के भय का प्रतीत होते देखा हैं,
हसरत थी 'मोहित' तेरे जिक्र की,
मैंने पल-पल अपने मौत को घटित होते देखा है।।

~मोhit_Iyer

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