साँसे टूटकर बिखरने लगी हैं

साँसे टूटकर बिखरने लगी हैं

ज़िन्दगी अब अखरने लगी हैं,
साँसे टूटकर बिखरने लगी हैं,
घरों से भीड़ निकलने लगी हैं।

हर तरफ़ मेरे चर्चे हो रहें हैं,
ज़िन्दगी सस्ती मौत पर खर्चे हो रहें हैं।

अरसो बाद मेरी देह को चीर मिला है,
जैसे किसी प्यासे को नीर मिला है।

मेरे करीब कुछ लोग मौन बैठे हैं ,
क्या पता यह सब कौन बैठे हैं।

जिंदगी के पांव में मौत की बेड़ियां पड़ी हैं,
मौत के आगे मसरूफियत हाथ बांधे खड़ी है।

फिर अचानक मेरे जाने की तैयारी हो रही हैं,
मैं आराम से लेटा कंधो की सवारी हो रही हैं।

मेरी देह अपनों के हाथों जलने लगी है।
घरों को भीड़ वापिस निकलने लगी है।

#मोHit Iyer

Post a Comment

Thank for supporting 🙏

Total Pageviews

[blogger]

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget