कभी न मिली - Sad Poetry

कभी न मिली

मैंने उम्र तो पाई मगर वो जिंदगी कभी न मिली,
शमा तो ख़ूब जलाया मगर रौशनी कभी न मिली।

चाह में जिस नजर की हम रहे उम्र भर तन्हा,
वो नज़र इस नजर से मगर कभी न मिली।।

सिर्फ़ इक घड़ी ही सही जो देती सुकूँ मुझकों,
साँसें थाम-ली मैंने मगर वो घड़ी कभी न मिली।

काम हर इक अधूरा-अधूरा-सा रहने दिया,
इक पल की भी फुरसत मुझे मगर कभी न मिली।।

सबने ख़ूब खेला जज्बात से मेरे जैसे खेल हो कोई,
भीड़ तो दे दी मुझे मगर दोस्ती कभी न मिली।।

औरों को क्या ईल्म मेरी दर्द-ए-दिल तन्हाई का,
क्योंकि मेरी लय और उनकी लय कभी न मिली।

कौन जाने क्या दोष था मेरी फरियाद में 'मोहित',
लाख ढूँढा मैंने ख़ुद मे मगर कमी कभी न मिली।।


#मोHit Iyer

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