जो तुम्हें चाहिये, वो मीत कैसे बनूँ?
मैं ग़ज़ल हूँ, गीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हें चाहिये, वो मीत कैसे बनूँ?
ठहरी हुई हैं एक खामोशी मेरे मन मे!
तेरे जीवन का संगीत कैसे बनूँ?
तुम सावन हो, मैं जून का ताप हूँ,
तुम जीवन हो, मैं बस संताप हूँ,
मैं स्वयं हार हूँ ,जीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हे चाहिए वो मीत कैसे बनूँ?
~मोhit
Post a Comment
Thank for supporting 🙏