एक स्त्री चाहिए.....
एक स्त्री चाहिए
जिसके समक्ष
मैं सिर्फ तन से नहीं
मन से भी नग्न हो सकूँ
उतार फेंकूँ सारे मुखौटे
भूला सकूँ पुरुष होने का दम्भ
रो सकूँ जार जार
जिसे कह सकूँ
पुरुष हूँ मगर
पीड़ा अनुभव करता हूँ
चाहता हूँ बिल्कुल माँ की तरह
तुम फेर दो हाथ बालों पर गालों पर
पुरूष होते हुए भी
कांधा चाहिए कभी कभी मुझे भी
सिर्फ चमकता
दमकता बदन ही नहीं
एक स्त्री चाहिए
जिसे प्रेम करते हुए
पूजा भी कर सकूं
वासना से नहीं श्रद्धा से
जिसके चरणों को चूम सकूँ
जिसके स्पर्श मात्र से
पुलकित हो उठे रोम रोम मेरा
कर दूं पूर्ण समर्पण
विगलित हो अस्तित्व मेरा
मैं नारी बन जाऊं
वो पुरुष बन जाएं
उसमें मैं नजर आऊँ
वो मुझमें नजर आएं
हम शंकर का अद्वैत हो जाए
एक स्त्री चाहिए
जिसे मैं उस तरह प्रेम कर सकूँ
जिस तरह एक स्त्री प्रेम करती है..!!
#अभी