क्या उम्र भर रखूँ उसे, जो रात भर नहीं रहा | The Pen Poetry Blog

क्या उम्र भर रखूँ उसे, जो रात भर नहीं रहा।

वो सर-ब-सर नहीं रहा,
मेरा जीवन बसर नहीं रहा।

वो भी तो ज़िंदा है अभी,
मैं भी तो मर नहीं रहा।।

सबको तो मरना ही है एक दिन,
कोई भी अमर नहीं रहा।।

ये भी सच है की मैं,
घर छोड़ कर हीं रहा।।

क्या उम्र भर रखूँ उसे,
जो रात भर नहीं रहा।।

~मोHit_Iyer✍🏻

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