मैं अपने ही अंदर धीरे-धीरे मार रहा हूँ
मैं अपने ही अंदर धीरे-धीरे मार रहा हूँ
बुझे हुए दिए मैं जला रहा हूँ,
अपने ही ख़्वाबों से ख़ौफ़ खा रहा हूँ।
बादलो ने रोका है रास्ता रोशनी का शायद,
इसीलिए मैं अँधेरों से दोस्ती निभा रहा हूँ।।
प्यास है दो बूंद ही मिल जाये कहीं से,
इसी आस में अपने दिन गुज़ार रहा हूँ।
मयस्सर कहाँ मुझे सुकूँ-ओ-चैन मिले,
मैं ज़िन्दगी से मौत की ओर जा रहा हूँ।।
हौसलों की बुनियाद से महल बना मेरा,
उड़ा न ले आँधियाँ, इसलिए मैं डर रहा हूँ।
मुक़द्दर भी अपना खेल खेल रही है,
मैं अपने ही अंदर धीरे-धीरे मार रहा हूँ।।
#मोHit_Iyer
Post a Comment
Thank for supporting 🙏