मैं ढूंढ रहा हुँ खुद को | Read Real Life Lesson Kavita by Shubham Kumar Gond

फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
तारों से सजी बारात लिये।
इक चांद भी चरखे कि तरह,
बेगाने रथ में जैसे है लगे,
वो धुंधली सी किरणे,
मेरी परछाई के दिखते हैं,
मैं ढूंढ रहा हुुँ खुद को,
इस अंधेरे से रस्ते में,

फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
तारों से सजी बारात लिये।
इसके धुएं में मैं डूब गया,
मेरी ख्वाहिशों को मैं भूल गया
मैं खुद को जैसे छोड़ गया,
मेरे अंदर मैं खुद आप नहीं,
तनहा जैसे जा रहा जिये,
फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
सपनों की झूठी शान लिये।

...शुभम्

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