2020

हाँ मुझे सम्भलने में थोड़ा वक़्त लगा,
माहौल में ढलने में थोड़ा वक़्त लगा।

कोशिश, अच्छी की उसने जलाने की,
मगर मुझे, जलने में थोड़ा वक़्त लगा।

कागज़ की नाव में सवार मेरी ख्वाहिशें,
नाव को गलने में थोड़ा वक़्त लगा।

ऐसा नहीं था की, इंतजार नहीं किया,
लेकिन मुझे चलने में थोड़ा वक़्त लगा।

बातें अक्सर सीधी करता ही था मैं,
पर लोगो को समझने में थोड़ा वक़्त लगा।

महफ़िल तो अच्छी सजाई थी 'मोहित',
पर माहौल बदलने में थोड़ा वक़्त लगा।

~मोHit

अगर चाँद  से गुफ़्तगू करने बैठे,
तो तारे बाते बनाने लगेंगे।

ये जो लोग साथ चल रहे हैं,
यहीं कल हमको समझने लगेंगे।।

जब अंधेरों से जी भर जायेगा मेरा,
तो उजाले भी हमको सताने लगेंगे।

छोड़ दिया हमनें रातों  को सोना!
की ख्वाब भी हमको डराने लगेंगे।

बस एक लम्हे  में हम गुम हो जायेंगे,
फिर हमे ढूँढने में ज़माने लगेंगे।

दिल मे जो खामोशी हैं, वो ज़ख़्म हैं,
ये जो बाहर निकले तो शोर मचाने लगेंगे।

©मोHit_Iyer

कभी न मिली

मैंने उम्र तो पाई मगर वो जिंदगी कभी न मिली,
शमा तो ख़ूब जलाया मगर रौशनी कभी न मिली।

चाह में जिस नजर की हम रहे उम्र भर तन्हा,
वो नज़र इस नजर से मगर कभी न मिली।।

सिर्फ़ इक घड़ी ही सही जो देती सुकूँ मुझकों,
साँसें थाम-ली मैंने मगर वो घड़ी कभी न मिली।

काम हर इक अधूरा-अधूरा-सा रहने दिया,
इक पल की भी फुरसत मुझे मगर कभी न मिली।।

सबने ख़ूब खेला जज्बात से मेरे जैसे खेल हो कोई,
भीड़ तो दे दी मुझे मगर दोस्ती कभी न मिली।।

औरों को क्या ईल्म मेरी दर्द-ए-दिल तन्हाई का,
क्योंकि मेरी लय और उनकी लय कभी न मिली।

कौन जाने क्या दोष था मेरी फरियाद में 'मोहित',
लाख ढूँढा मैंने ख़ुद मे मगर कमी कभी न मिली।।


#मोHit Iyer

साँसे टूटकर बिखरने लगी हैं

ज़िन्दगी अब अखरने लगी हैं,
साँसे टूटकर बिखरने लगी हैं,
घरों से भीड़ निकलने लगी हैं।

हर तरफ़ मेरे चर्चे हो रहें हैं,
ज़िन्दगी सस्ती मौत पर खर्चे हो रहें हैं।

अरसो बाद मेरी देह को चीर मिला है,
जैसे किसी प्यासे को नीर मिला है।

मेरे करीब कुछ लोग मौन बैठे हैं ,
क्या पता यह सब कौन बैठे हैं।

जिंदगी के पांव में मौत की बेड़ियां पड़ी हैं,
मौत के आगे मसरूफियत हाथ बांधे खड़ी है।

फिर अचानक मेरे जाने की तैयारी हो रही हैं,
मैं आराम से लेटा कंधो की सवारी हो रही हैं।

मेरी देह अपनों के हाथों जलने लगी है।
घरों को भीड़ वापिस निकलने लगी है।

#मोHit Iyer

मैं गीत लिखूँगा बादल पे, मीत तुम्हारी यादों में...
बरसेगा तुम पर प्यार मेरा, सावन की इन बरसातों में,
जो तुम न निकली कमरे से, तो खिड़की पर जा बैठेंगे।
बूंद बूंद कर भर जायेगा, मेरा प्यार तुम्हारे हाथों में,
खिड़की पर भी जो न मिली तो आंगन में आ जायेंगे।।
वही बरस कर सबर करेंगे, चुपके से हम रातों में।।
मैं गीत लिखूँगा बादल पे, मीत तुम्हारी यादों में....


#मोHit Iyer

For what reason, would it be advisable for me to welcome the basic things in life after the end of this pandemic?

"Sometimes it is good to invest some time to ponder the things you underestimate in your daily life." 

~मोHit Iyer

Release me back in time. Not very long, however just a half year back, when the pandemic hadn't happened at this point. I was reviling the traffic, whining over luck for not being so good enough, and abhorring that the general store close to my home didn't have my preferred items. 

Soon after, because of the worldwide pandemic, my nation was under lockdown like numerous others. I understood and realised that how wonderful and favourable life I was having. Soon I've realised that I was underestimating things and grumbling about the most insignificant issues. 

At the point when I think back now, I notice numerous extraordinary everyday issues whose significance I neglected to see before.

1. Independence of my life :

I wanted to go wherever I want and do whatever I want. Until I did nothing illegal or broke any rules.

I had the freedom to live the life I wanted. There is no stopping, and no questions asked. It was my life and my choice.

Still, if I had to drive far enough, I would have thought of the miles I had to cover. Whatever I needed was just thought and met, yes though according to the budget.

But during the lockdown, I realized that everything was vanished which was as easy for me as it was. Now a valid reason was needed to travel that distance and face the police which certainly does not allow me to go there. Also, getting out for every little thing was not as easy as before.

While Staying at home, My life has taught me that losing control over the basic aspects of your life makes you uncomfortable. These are things that we consider to be normal and expected. We only realize their value when they disappear.

2. Comfort zone of my life :

Life and innovation have developed throughout the years significantly. Truth be told, life today is very different than it was decade back. Prior, you needed to use a wide range of intends to do numerous little things. In modern technical era, numerous assets are available for you to do the same things effortlessly. 

Presently, we appreciate a ton of advantages from our doorstep. You can arrange food, wash your vehicle, or send a bundle to your companion without venturing outside your front entryway. 

During this pandemic, I have to wait a long time to use all those services and now, I have a lot of affection and respect for all those industries which are going out of their homes in this situation and helping others in delivering goods at doorstep.

3. Interaction with others:

Earlier, when I went out with a huge gathering, I was regularly trolled there. As a self observer and antisocial person, I generally favoured just a specific level of interaction or communication with others. Moreover, I prefer to be all alone rather than mingling or socialize. My smile consistently feels counterfeit, and handshakes give off an impression of being pointless. 

Today, when I precede a gathering or an individual, the smile is holed up behind the mask, and there is no question of a handshake any longer. Prior, we used to call individuals around us as "mob", today we call our circumstance "disengagement or isolation". 

New memes on the Internet, who express that an antisocial people or an introverts don't feel any distinction bolted inside the house, however I don't think so. Both introvert or extrovert need probably some kind of communication or interaction to feel related or associated with the world.

क्या आप जानते हैं कि "पुण्य और पाप क्या हैं"? 

हम सभी ये बात से वाकिफ़ हैं कि, दूसरों को दुःख पहुचना पाप हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि फिर आखिर पुण्य क्या हैं और इसे किस प्रकार कमाया जा सकता हैं?
आम लोगो की मानें तो वो इसका उत्तर कुछ इस प्रकार देंगें,
  • मंदिर जाने से,
  • पूजा करने से,
  • यज्ञ या अन्य धर्मानुष्ठान करने से, इत्यादि।
इन सभी कार्यो को करके आप निसंंदेह पूण्य

कमा सकते हो परन्तु मेरे विचार में ये पूर्णताः सही नही हैं। यदि आप मेरे विचारों को तनिक विचार करेंगें तो आप मेरी कहीं हुई बातों से सहमत होंगे। जिस प्रकार दूसरों को कष्ट देने से पाप मिलता हैं, उसी प्रकार, दूसरों के दुःखों का निवारण करने से पुण्य मिलता हैं। अत्यंत दुःखी लोगों के कष्टों को निवारण करने से अत्यधिक पूण्य मिलता हैं।

भावतगीता के अध्याय-6 के 46वें श्लोक में कहाँ गया है कि

"योगी ऋषियों से श्रेष्ठ होते हैं तथा वे ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ होते हैं, अतः हे अर्जुन! तुम योगी बनो"

HHHH

लॉकडाउन

हालात यूं ही बिगड़ते रहे और लोग निराश हो गए।

किसी ने तो संभाल लिया खुद को तो कुछ हताश हो गए।

किसी ने कुछ पाया तो किसी ने बहुत कुछ खो दिया,

यहां गरिबों के भूखे बच्चे हार मान कर उदास हो गए।।

~मोHit अय्यर

सूरज की तपिश से
मैं ना डरूंगा,
मैं मंज़िल मेरी! मुकम्मल करूँगा।
.
ख्वाबों को अपने मैं
पूरा करूँगा,
मैं मंज़िल मेरी! मुकम्मल करूँगा।
.
हर क्षण हर दिन मैं
श्रम करूँगा,
मैं मंज़िल मेरी! मुकम्मल करूँगा।
.
विफ़ल हुआ तो फिर
कोशिश करूँगा,
मैं मंज़िल मेरी! मुकम्मल करूँगा।
.
धीरे-धीरे मैं सबको
मन-मोहित कर आगें बढूंगा,
मैं मंज़िल मेरी! मुकम्मल करूँगा।
.
~मोHit अय्यर

उन्हें हमारे घर आए कई रोज हो गए,
किस्से सूने और सुनाए कई रोज़ हो गए।

वो रूबरू हुए थे जमाना गुज़र गया,
हमको भी मुस्कुराए कई रोज़ हो गए।।

किस बात की तकरार थी जाने क्या बात थी,
तुमको भी मुह फुलाए कई रोज़ हो गए।

कोई कह दे उनसे कि अब लौट आए,
अब तो हमे सताए कई रोज़ हो गए।।

अब तो बस इन्तज़ार-ए-मौत का है,
अब अश्को को छुपाए कई रोज़ हो गए।

अब इस जहा से जा रहे ह हम,
यू दर्द-ए-दिल दबाए कई रोज़ हो गए।।


#मोHit_Iyer

स्त्री चाहती है कि पुरुष उनके प्रति सोच को विकसित करें और उनकी सोच का दायरा सम्पूर्ण रूप से वैसा हो जैसा वो चाहती है परंतु अपनी सोच विकसित ना करके वो पुरुष को पुरानी रूढ़वादी सोच जैसा प्रदर्शित करती है और खुद ही भेदभाव जैसा महसूस करती है और आरोप पुरुष पर प्रत्यारोपित करती है..!!

#अभी

पुरुष के लिए सफलता कोई विकल्प नही है।
यह उसके लिए जीवन और मरण का सवाल है।
सफलता में भी सरकारी मुहर को ही मान्यता है।
बिना सफलता प्राप्त किये पुरुष को पुरुष नहीं माना जाता। स्वयं एक स्त्री भी उसे स्वीकार नहीं करती।
कोई क्यूँ एक बेरोजगार को अपनी बेटी नहीं देता।
परंतु जैसे ही वह रोजगार प्राप्ति करता है।
घर के सामने लड़कियों की लाइन खड़ी होती है।
समाज और लोगों के लिए भी ये बात कोई मायने नहीं रखती।
खैर क्या सोचता हूं मैं भी पुरुषों की तो ये जिम्मेदारी है..!!

#अभी

जीवन की महाभारत में एक के
बाद एक लक्ष्य साधते हुए
अर्जुन समझ रहा था मैं खुद को‌
सोचा बस अब तो श्री कृष्ण से
ज्ञान पाना बाकी है
एका एक याद आया
निहत्था अभिमन्यु हूं मैं तो
और अभी तो मेरा
चक्रव्यूह में फंसना बाकी है..!!

#अभी

हाँ, मैंने देखा हैं

हाँ, मैंने देखा हैं.....

दिन को रात होते देखा हैं,
ख़ुद को अनाथ होते देखा हैं।
आगामी वक़्त की फ़िक्र में,
मैंने कल को आज होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

इंसानों को जल कर राख़ होते देखा हैं,
रिश्तों में सबकुछ ख़ाक होते देखा हैं।
थोड़े से ज़िक्र के लिए,
मैंने बच्चों को गुस्ताख़ होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

हरे-भरे बागों को विरान होते देखा हैं,
चलती-फिरती राहों को सुनसान होते देखा हैं।
उस क़यामत से भरे शब-ए-हिज्र में,
मैंने भरी-पूरी बस्ती को श्मशान होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

घर को बदल कर मकान होते देखा हैं,
अपनों को अपने लिए अनजान होते देखा हैं,
उम्रभर रहा मैं तलाश-ए-खिज्र में,
मैंने मद्दतगारो में भी गुमान होते देखा हैं।।
हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपनों के फ़रेब से अनबन होते देखा हैं,
ज़िस्म के लिबाज़ को कफ़न होते देखा हैं,
कईयों की इस जन्नत-ए-फ़िक्र में,
मैंने रूह को घुल कर दफ़न होते देखा हैं।।

हाँ, मैंने देखा हैं.....

अपने ख़्वाबों को मैंने अतीत होते देखा हैं,
ख़ुद में ख़ुद के भय का प्रतीत होते देखा हैं,
हसरत थी 'मोहित' तेरे जिक्र की,
मैंने पल-पल अपने मौत को घटित होते देखा है।।

~मोhit_Iyer

एक स्त्री चाहिए
जिसके समक्ष
मैं सिर्फ तन से नहीं
मन से भी नग्न हो सकूँ
उतार फेंकूँ सारे मुखौटे
भूला सकूँ पुरुष होने का दम्भ
रो सकूँ जार जार
जिसे कह सकूँ
पुरुष हूँ मगर
पीड़ा अनुभव करता हूँ
चाहता हूँ बिल्कुल माँ की तरह
तुम फेर दो हाथ बालों पर गालों पर
पुरूष होते हुए भी 
कांधा चाहिए कभी कभी मुझे भी

सिर्फ चमकता
दमकता बदन ही नहीं
एक स्त्री चाहिए
जिसे प्रेम करते हुए
पूजा भी कर सकूं
वासना से नहीं श्रद्धा से
जिसके चरणों को चूम सकूँ
जिसके स्पर्श मात्र से
पुलकित हो उठे रोम रोम मेरा
कर दूं पूर्ण समर्पण
विगलित हो अस्तित्व मेरा
मैं नारी बन जाऊं
वो पुरुष बन जाएं
उसमें मैं नजर आऊँ
वो मुझमें नजर आएं
हम शंकर का अद्वैत हो जाए

एक स्त्री चाहिए
जिसे मैं उस तरह प्रेम कर सकूँ
जिस तरह एक स्त्री प्रेम करती है..!!

#अभी

तज़ुर्बा

कोई आये या जाए, कोई  बात  नही,
तज़ुर्बा है, ये कोई आम बात नही।
फ़कत ग़रीबी से  ही  आता  है  तज़ुर्बा,
गरीबी में रहना किसी के बस की बात नही।।

जहां में हर एक  बन्दा खुदा का है,
मेरे नज़र में तो कोई भी खराब नही।
झुर्रियां पड़ जाती दिन-ओ-रात कमाने में,
हर दुकान में मिले, तजुर्बा कोई शराब नही।।
      
#मोHit_Iyer

समय का चक्र तो चलता ही रहेगा

समय का चक्र तो चलता ही रहेगा,
वक़्त तो यूँ बदलता ही रहेगा।
कभी खुशी तो कभी ग़म रहेगा ,
ये सब तो यूँ चलता ही रहेगा।।

मिलना-बिछड़ना तो लगा ही रहेगा,
सदा हस्ते रहो अच्छा रहेगा।
भाग्य तो उदय होता ही रहेगा
जब तक कर्म तू करता रहेगा।।

फूलो का खिलना-झड़ना होता ही रहेगा,
पर 'मोहित', पेड़ तो सीधा खड़ा ही रहेगा।
क्योंकि वक़्त तो यूँ बदलता ही रहेगा।
समय का चक्र तो चलता ही रहेगा।।

#मोHit_Iyer

अब यूँ फिर कभी मुलाकात न होगी

शायद, अब यूँ फिर कभी मुलाकात न होगी,
सोचा न था कभी कि फिर बात न होगी।

तेरा मुस्कुराना और घबराके दांतों से लबो का दबाना,
याद है मुझे सब लेकिन अब फिर वो रात न होगी।।

माना दुविधा में हो आज,
दोनों की राहें जो जुदा होगी।
पर घबराओ मत जी लूंगा,
पर इस सफ़र में तुम साथ न होगी।।

रिश्ते बनते ही टूट जाने का ग़म मैं जानता हूँ,
किसी की ज़िंदगी मुझ जैसी अकस्मात न होगी ।।

#मोHit_Iyer

मैं अपने ही अंदर धीरे-धीरे मार रहा हूँ

बुझे हुए दिए मैं जला रहा हूँ,
अपने ही ख़्वाबों से ख़ौफ़ खा रहा हूँ।
बादलो ने रोका है रास्ता रोशनी का शायद,
इसीलिए मैं अँधेरों से दोस्ती निभा रहा हूँ।।

प्यास है दो बूंद ही मिल जाये कहीं से,
इसी आस में अपने दिन गुज़ार रहा हूँ।
मयस्सर कहाँ मुझे सुकूँ-ओ-चैन मिले,
मैं ज़िन्दगी से मौत की ओर जा रहा हूँ।।

हौसलों की बुनियाद से महल बना मेरा,
उड़ा न ले आँधियाँ, इसलिए मैं डर रहा हूँ।
मुक़द्दर भी अपना खेल खेल रही है,
मैं अपने ही अंदर धीरे-धीरे मार रहा हूँ।।

#मोHit_Iyer

मुझे अच्छा तो नही लगता

सबकुछ तू छोड़ के आ जाये,
ऐसा मुझे तो नही लगता।
मैं तुझे अच्छा तो लगता हूँ,
मगर इश्क़ हो इतना तो नही लगता।।

तुझे यूँही कोई भी अच्छा लगे,
मुझे अच्छा तो नही लगता।
तेरा चुना अच्छा न जाने क्यों,
मुझे अच्छा तो नही लगता।।

~मोHit_Iyer

यदि प्रेम न होता तो कैसा होता
न मिलतीं समन्दर को पागल सी नदियाँ
और न ही ये चाँद इतना दमकता
न ही ये बादल मटक कर यूँ आते
तय करते मीलों का सफ़र
धरा को प्रेम रस में भिगोने को 
ये हवायें डाकिया न होती 
तकन लाती संग अनगिनत सदायें
यदि प्रेम न होता तो कैसा होता..!!

#अभी

अगर आप सीधे हैं दिल से साफ हैं
आप प्यार देना जानते हैं
तो यकीन मानिए आपकी मोहब्बत
हर कोई पाना चाहेगा पर कोई
इसकी कदर नहीं करेगा
वो आपको अपने पास
रखेगा जरूर पर हमेशा
एक सुरक्षित अंतिम विकल्प 
के तौर पर, आप प्रेम करते
हुए कभी अपने लिए खुशियां
नहीं बटोर सकते हैं..!!

#अभी

मेरी जिंदगी मे तुम्हारा होना एक फेज था
जो गुजर गया और तुम्हारे ये न होने वाला
जो मेरी जिंदगी का फेज है बहुत कठिन है
मतलब कट ही नहीं रहा लेकिन वक्त है
वो दौर भी बीत गया जब तुम साथ थी
तो ये दौर भी बीत जाएगा जब तुम साथ नहीं हो
बाकी और सब बढ़िया तो रहता ही है हमेशा..!!

#अभी

गुजरते वक़्त का हवाला दिया न करो।
मुझें तुम झूठा दिलासा दिया न करो।।

किया जो भी मैंने बड़े ईमान से किया।
बदले में तुम मुझें धोखा दिया न करो।।

मिलने आओ तो अपनी खुशी से आना।
वस्ल में फ़रेब की खुशबु दिया न करो।।

न दो मुझें किसी भी काम की तारीफ़।
लेकिन बदले में तोहमतें दिया न करो।।

बेशक़ न मिलाओ तुम मुझसे गले।
बस पीठ में तुम खंजर दिया न करो।।

#मोHit_Iyer

हर दर्द जिसका मुझे मंजूर था,
वो शख्स मुझसे कोसों दूर था।

डूब चुका था मैं उसके चाह में,
पर वो तो किसी और के ही नशे में चूर था।।

हर जगह, हर पल इंतज़ार किया उसका,
पर वो तो किसी और के ही बाहों में मसरूफ़ था।

ढूंढा तो सही मैंने उसे हर कोने, हर गली में,
पर वो तो न जाने कौन से शहर था।।

उसकी नफ़रत को भी गले से लगाया मैंने,
की दिल मेरा इस क़दर चाहत में मजबूर था।

रुसवाई की सारी हदें पार कर दी तूने 'मोहित',
पर वो तो किसी और के ही इश्क़ में मशहूर था।।

#मोHit_Iyer

फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
तारों से सजी बारात लिये।
इक चांद भी चरखे कि तरह,
बेगाने रथ में जैसे है लगे,
वो धुंधली सी किरणे,
मेरी परछाई के दिखते हैं,
मैं ढूंढ रहा हुुँ खुद को,
इस अंधेरे से रस्ते में,

फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
तारों से सजी बारात लिये।
इसके धुएं में मैं डूब गया,
मेरी ख्वाहिशों को मैं भूल गया
मैं खुद को जैसे छोड़ गया,
मेरे अंदर मैं खुद आप नहीं,
तनहा जैसे जा रहा जिये,
फ़िर वही शाम आंखों के सामने,
सपनों की झूठी शान लिये।

...शुभम्

आज दिल मे है, कल नज़र से उतर जायेंगे,
आज जी रहे है, कल दुनियां से निकल जायेंगे।

सच तो बताना जरूरी है, कलम की नोंक से,
यूँ दब कर रहेंगे 'मोहित', तो घुटन से मर जाएंगे।।

✍🏻✍🏻
~मोHit_Iyer

सब हो जाएगा सही, पर आज हो, ये ज़रूरी तो नहीं

सब हो जाएगा सही,
पर आज हो, ये ज़रूरी तो नहीं।


चिड़ियों की वो चहचहाहट,
काले बादलों कि गड़गड़ाहट,
मोर का वो पंख फैलाकर नाचना,
होगा सब फिर से वही,
पर आज हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

वो कलियों का खिलना,
भौरों का उनसे मिलना,
रात में जुगनुओं का चमकना,
आकाश में चांद का उगना,
और बहेगी फिर से स्वच्छ नदी,
पर आज हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

ये अंधेरा भी दूर हो जाएगा,
इंसान फिर से मुस्काएगा,
आंखों में नई ऊर्जा के साथ,
करेंगे फिर प्रकृति का विकास,
फिर से होगी नई रोशनी,
पर आज हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

~शुभम्

क्या उम्र भर रखूँ उसे, जो रात भर नहीं रहा।

वो सर-ब-सर नहीं रहा,
मेरा जीवन बसर नहीं रहा।

वो भी तो ज़िंदा है अभी,
मैं भी तो मर नहीं रहा।।

सबको तो मरना ही है एक दिन,
कोई भी अमर नहीं रहा।।

ये भी सच है की मैं,
घर छोड़ कर हीं रहा।।

क्या उम्र भर रखूँ उसे,
जो रात भर नहीं रहा।।

~मोHit_Iyer✍🏻

कभी मैंने पूछा नही, आज मगर बता दो न माँ

कभी मैंने पूछा नही, आज मगर बता दो न माँ,
अपने सपनों को खुल-कर जता दो न माँ,
छोड़ो कल और आज की फ़िक्र,
ग़म सारे अपने आज हटा दो न माँ।।

कभी मैंने पूछा नही, आज मगर बता दो न माँ,
अपने कुछ अनकही ख़्वाहिशों को बता दो न माँ,
देखों पूरा न भी कर सका, फ़िर भी कोशिश जरूर करूँगा,
लेकिन इस बेटे को मौका तो इत्ता दो न माँ।।

वो स्कूल का बस्ता सजाना, टिफ़िन लगाना, कक्षा में मेरा अव्वल आना,
ऐसे ही कुछ ख़्वाब रखती थी न माँ,
कभी मैंने पूछा नही, आज मगर बता दो न माँ,
चलो फ़िर से स्कूल जाता हूँ, मेरे लिए कुछ बना दो न माँ।।

~मोHit_Iyer

क्यों मैं हरपल रोता ही रहा हूँ।।
बुझ गए सारे दियें, अब हो गया अंधेरा,
साथी न दोस्त, अब कोई नही है मेरा,
आख़िर किसके लिए मैं जीता ही रहा हूँ,
क्यों मैं सब-कुछ खोता ही रहा हूँ,
क्यों मैं हरपल रोता ही रहा हूँ।।

अब तो हँस रहा है हालत पे मेरे ये सारा ज़माना,
क्या दुःख है मुझें, ये किसी ने कभी न जाना।
ख़ामोश-सा चेहरा लिए फिरता ही रहा हूँ,
क्यों मैं सब-कुछ खोता ही रहा हूँ,
क्यों मैं हरपल रोता ही रहा हूँ।।

रास न आये ये तौर-तरीके, ये सर्द-फ़िज़ाये,
मेरे अश्कों को छुपाती ये सावन की घटाएं,
ग़मो को अपने हरदम छुपाता ही रहा हूँ,
क्यों मैं सब-कुछ खोता ही रहा हूँ,
क्यों मैं हरपल रोता ही रहा हूँ।।

~मोHit Iyer #review

खुलने न दी मंदिर-मस्ज़िद,
बंद पड़ा हैं पाठशाला।
सरकारों को खूब भा रही,
धन बरसाती मधुशाला।।

सोशल-डिस्टनसिंग की रेड़ मर चुकी,
लॉकडाउन को पूरा धो डाला।
शराबियों के व्याकुल हृदय पर,
रस बरसाती मधुशाला।।

नही मिल रहा राशन-पानी,
मगर मिलेगी मधुशाला।
भाड़ में जाये जनता सारी,
क्योंकि दर्द में है पीनेवाला।।

नशा मुक्त हो जाता भारत,
तो कैसे चलती मधुशाला।
कोरोना से मुक्त न होगा कोई,
जब तक खुली रहेगी मधुशाला।।

एक विनती 'मोहित' की भी सुन लो,
ग़र जाए कोई मधुशाला।
वापस न आने दो उसको,
तुम बन्द करो अपने घर का ताला।।

~मोhit

Shayari on Drunkard's

रख लेंगें 2-4 बोतल कफ़न में,
खुद तो मरेंगे ही दूसरों को भी मारेंगे।
जब माँगेगा खुदा हिसाब गुनाहों का,
एक पेग उसको भी लगवा देंगे।।

#बेवड़े_भारत_की_शान

~मोHit Iyer✍🏻✍🏻

मुझसे नहीं कटती अब
ये उदास रातें!!
बेखुदी मे कल सूरज से कहूँगा,
मुझे साथ लेकर डूबे...

~मोhit

ये फिजाओ में केसा सन्नाटा पसर गया।
इश्क़ का जो भुत था, शायद उतर गया।।

4 दिन साथ रहा वो मेरे भी हमदर्द की तरह।
फिर वो अपने घर गया, मैं अपने घर गया।।

~मोHit Iyer

Maut Sad Shayari in Hindi
ए ज़िंदगी दर्द थोडे कम दिया कर,
लगता है कभी मौत ही दस्तक दे जाएगी।
या फ़िर सीख कुछ मौत से,
एक दर्द में तुझे मुझसे ही छीन ले जाएगी।।

~मोhit

तुम निगाहें मेरे कपड़ों के भीतर डालो,
उससे पहले सुनना, वहां भीतर एक दिल धड़कता है।
जिसे हवस नहीं, बस इश्क़ की तिश्नगी है।

~मोHit Iyer

My home seems to me a prison, and seeing myself as a prisoner.
Oh dear corona, please fly away somewhere.

Peace is beautiful but fun as before is nowhere,
Oh dear corona, please fly away somewhere.

Some are dealing with this virus, some are dealing with hunger,
Oh dear corona, please fly away somewhere.

Just because of this lock, people scream everywhere.
Oh dear corona, please fly away somewhere.

#मोHit Iyer

आज वही खाली इंतजार है तुम्हारा
वो काश वाला इंतजार
जो कभी पूरा नही हो पाता
बस छोड़ जाता है तो ढेर सारा दर्द और सन्नाटा
कहने को तो बहुत कुछ है
लेकिन अब कहेंगे नहीं
और जब तक तुमको हमारी खामोशी महसूस होगी
तब तक बहुत दूर जा चुके होंगे हम
खैर हमें कोई शिकायत नहीं तुमसे
न ही कोई मलाल
बस खुश रहो.. हमेशा मुस्कुराते हुये..!!

#अभी

वक़्त कब ले करवट ये कौन जानता हैं?
खामोशी का पहनकर नक़ाब आये कोई कौन जानता है?
यूँ ही किसी पे भरोसा न किया करो मेरे दोस्त 'मोहित'!
किस-किस के आस्तीन में छुपे हो नाग कौन जानता हैं?


~मोHit Iyer

चंद बूंदे गिरी ज़मी पर,
और हाहाकार हो गया!

जिसने छुपाये आंसू वो,
कलाकार हो गया!!

कब तक बरसोगे तुम,
इसी तरह आसमान में!

बादल तेरी वजह से,
ये खेत बर्बाद हो गया!!

~मोHit Iyer

पैरो को छू लेती है समंदर की लहेरे,
वो कभी बता के नहीं आती।
दो आंसू गिर जाते है उसकी याद मे,
फिर भी रोने की आवाज नहीं आती।।

~मोHit Iyer

खोकर खुद का वजूद मुझे संभाला हैं,
मुझें इस खूबसूरत सांचे में ढाला हैं!
मेरा किरदार रहा है मेरे पापा जैसा,
कांटो की राहों पर फूलों से पाला हैं!!

~मोHit Iyer

मेरे लफ़्ज़ों पे मेरा ज़ोर नहीं,
कुछ इस क़दर मेरी पहचान है !
समझने वाले तो मुझे समझ गये,
जो नहीं समझे वो अब तक हैरान हैं !!

~मोhit Iyer

वो मंज़र ही क्या जो फ़ीका न हो,
बस मंज़िल साफ दिखनी चाहिए !
मुश्किलें तो आती ही रहेंगी ज़िन्दगी में,
बस वो सलीक़े से गुज़र जानी चाहिए !!

~मोhit Iyer

ग़र दर्द हो रहा है, तो फिर उसे पुकार ले।
नए दर्द से अपने पुराने दर्द को संवार ले।।

बना ले नासूर इस क़दर अपने दर्द को 'मोहित'!
की दर्द के मारे सभी तुझसे कुछ दर्द उधार ले।।

~मोhit Iyer

जो हैं उसको दिखाने की जरूरत क्या हैं?
अपनी पहचान बताने की जरूरत क्या है?
आपका क़िरदार दिखा देगा आपकी शख्सियत!
ढोलक पीटकर हल्ला करने की जरूरत क्या है?

~मोhit

मैं ठहरा Maths का विद्यार्थी,
वो History की छात्रा थी,

मैं खुद में Maths की किताब सा था,
वो चलती-फिरती ज्ञान का पिटारा थी।।

मैं कोई unsolved equations सा था,
वो अज्ञात महाद्वीप का किनारा थी,

ये मेल iota की value सा था,
क्योंकि वो दूर कोई गुमनाम सितारा थी।।

~मोhit

पिताजी के गुज़र जाने के बाद कि हुई मेरी अपनी रचना - मेरी अंतर्मन की पीड़ा

मेरी अंतर्मन की पीड़ा का,
तुम्हें ज़रा भी एहसास नहीं।
बहुत करीब होकर भी,
अब तुम मेरे पास नहीं।।

आपके साथ बिताया हर वक़्त, हर लम्हा,
उन्हें भूल पाना मेरे बस में नहीं।
यादों की उन सुनेहरी जंजीरों में जकड़ा मैं,
अब खुलकर ले पाता हूँ साँस नहीं।।

वो हाथ थामकर स्कूल जाना,
अब स्कूल जाने में वो बात नहीं।
वो आपका चिल्लाना, और मेरा चैन से सोना,
अब ऐसी कोई एक भी रात नहीं।।

#मोhit_Iyer #papa #dedicated

अब बहुत हो चुकी अच्छाई,
अब खूबियां मैं अपनी दिखाऊंगा।

फिर लौटूंगा एक नए आदाज़ में,
सब देखेंगे मुझको, एक नया जहान बनाऊंगा।।

~puनीत पाthak

मै करता था प्यार उसको,
लेकिन उसे ये बता ना पाया..

वो अती थी मेरे सामने रोज,
लेकिन यह प्यार जता ना पाया..

वो जाती थी मेरे सामने रोज,
लेकिन उसे कभी सुना ना पाया..

आया एक दिन शादी का कार्ड
मेरे घर पर लेकिन,
ना कहकर ये कार्ड लौटा ना पाया.

हुई शादी उसकी आंखों के सामने मेरे,
पर मै उसका होना चाहता हूं उसे यह बोल न पाया..

अगले सुबह जब उठा मै खुदको संभालते हुए,
तो सामने मेरे दो चिता जल रही थी,
लेकिन मै वो आग को बुझा ना पाया..

~puनीत पाthak

वो दो चिता किसकी?

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बीते हुए वक़्तों ने पैरों के निशा छोड़े हैं क्या?
आने वाले वक़्तों से तूने ख़्वाब जोड़े हैं क्या?
क्यों फ़िक्र में हैं तू , आज और कल की!
घर बनाने वाले हाथों ने दिल तोड़े है क्या?

~मोhit✍️✍️

ये सियासत हैं कोई
घर का आंगन नहीं है
ये मैदान हैं युद्ध का,
मां का आँचल नहीं हैं
कैसे महफूज़ रहेगा
कोई नादां इस दलदल में
ये छलावा है क़ुदरत का,
बारीश का बादल नहीं हैं
बड़ी खूबसूरत दिखाई देती है
दूर से ये दुनियां
ये मुखौटा हैं दिखावे का
हक़ीक़त का आलम नहीं हैं
कितना भी समझना चाहूं इसे,
कुछ समझ नहीं आता
ये खेल है सियासत का,
क़िताब का सवाल नहीं हैं
क्यों करते हो बर्बाद 'मोहित'
उतर कर इस दलदल में
ये दरिया है मौत का
ज़िन्दगी का खयाल नहीं हैं
~मोhit ✍✍

इतना वक्त नही अब, की दुनिया की खोज-खबर रखूं।
किस-किस से मिलू जाकर, किस-किस की खबर रखूं।।

जो भूल गये मुझको, उन्हें मैंने भी भूलाया है।
क्यों भूल गए, क्या बात हुई, क्यों मैं इन सबकी खबर रखूं।।

हर दूसरा शक़्स यहां, अब मुझसे है ख़फ़ा। 
वो ख़फ़ा हैं क्यों इस बात की कैसे मै खबर रखूं।।

सब ने काटें बोयें हैं राहों में आकर मेरी।
कब तक मै सहू सब कुछ और कितना मै सबर रखूं।।

ज़ुल्म-ए-सितम सहने की एक हद होती है।
वक़्त-दर-वक़्त हो रहें हैं जो सितम, कितना सबकी मै कद्र रखूं।।

अब 'मोहित' तुझको भी आवाज़ उठानी होगी।
हर हद पार हो जाने के बाद, कैसे मैं सबर रखूं।।

~मोhit  ✍

लोगो मनसूबे बदल जाते हैं, 
उनके अल्फ़ाज़ तक बदल जाते है,

ये कलयुग है जनाब यहाँ इक पल में,
लोगो के जज्बात के साथ-साथ लोग तक बदल जाते है।।

~मोhit

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जब-जब तुम दुनिया से अलग रहें, मानो तुम गलत रहें,
इन शब्दों को गलत लिखकर, मैं सबकी हथेली में छाप दूंगा।

इन नाकामियों से कहो अपनी हद में रहे, 
मैं शायर हूँ अपनी कलम से एक-एक को माप दूंगा।।

✍✍
~मोhit

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रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आतें हैं,
सब दिखावें के तारे नज़र आते हैं।

कोई पागल ही मुझे मोहब्बत से नवाज़ेगा,
आप तो ख़ैर मुझे समझदार नज़र आतें हैं।।

हाँ! ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के,
शायद फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आतें हैं।

बस एक ही बार हुआ हूँ उन पर 'मोहित' 
और फिर वो ही लगातार नज़र आतें हैं।

~मोhit
✍✍

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काम अधूरा पड़ा है ख़्वाबों का 
आज फिर नींद ग़ैर-हाज़िर है।

लाज रख ली तेरी यादों ने,
वरना 'मोहित' भी कोई शायर है।।

~मोhit

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बहुत पहुँचा हुआ मुसाफ़िर मैं भी हूँ,
दिल भटकने में माहिर मैं भी हूँ।

कौन-कौन करेगा 'मोहित' इश्क़ से मुझको,
ग़र तू काफ़िर है तो ढीट मैं भी हूँ।।

~मोhit
✍✍

ख़ुद से भी खुलकर नही मिलता 'मोहित',
तुम क्या ख़ाक जानते हो हमें।।

बातें तो बड़ी अच्छी करते हो,
बस इतना ही पहचानते हो हमें।।

~मोhit

अभी तो बस याद आए हो,
बाद में तुम्हारी आस लगेगी।
न मिला तो दिल रोएगा,
क्या मुझको रोने की छूट मिलेगी?

आज तो पत्थर बाँध लिया है,
लेकिन कल फिर भूक लगेगी।
एक दिन ऐसे भूलूँगा दुनिया को,
की दुनिया मुझ को याद करेगी।

~मोhit

भुलूँगा नही तुमको कभी,
महफ़ूज़ है अंदर सारी यादें तुम्हारी,

तुम मुझे भूल गयी तो क्या,
मुझे तो याद है न सारी बातें तुम्हारी।।

✍✍
~मोhit

तुम क्या जनों..
जब दिल उदास होता हैं,
दर्द कुछ खास होता हैं,
हर सोच,
हर याद,
हर बात,
हर पल,
बड़ा बे-आस होता हैं,
बस एक आवाज़ सी होती हैं,
वो भी बे-साज़ सी होती हैं,
न कोई अपना-सा लगता हैं,
सब एक सपना-सा लगता हैं,
ये दिल क्यों उदास होता हैं?
तुम क्या जनों....

~मोhit

आज भी घाट किनारे वोही पहरा रहा,
मैं कितनी सदियों बाद आया मगर प्यासा ही रहा।

किसको फुरसत थी कि एक पल मेरी भी तरफ़ देखे कोई,
मैं जहाँ भी था, जैसे भी था, तन्हा रहा।।

✍✍
~मोhit

New collection of Poetry about Loneliness, Akelapan and Tanhai. Share these Shayari, SMS and Status with friend, girlfriend or boyfriend or set as Facebook or WhatsApp status. All Best Alone Shayari, Tanhai Shayari and Loneliness Status available in Hindi and English font both.

एक जंगल सा है, जिसका रास्ता नही मिलता हैं,
वक़्त हैं, अभी से घर लौट चलो अभी उजाला हैं।

रोज़ कहीं ठहर सा गया हूँ मैं,
की हाथों में दिया तो हैं मगर अंधेरा हैं।।

✍✍
~मोhit

निगाहें मेरी मुंतज़िर हैं, वो पूछती हैं जुस्तुज़ू क्या हैं,
हक़ीक़त ये हैं कि मुझे भी नही मालूम कि मेरी आरज़ू क्या हैं।

बदलतीं जा रही हैं करवटों पे करवटे दुनिया,
तज़ुर्बे पूछती हैं मुझसे की मेरी आयु क्या हैं।।

~मोhit

दिल दुःखा हैं और दर्द हुआ हैं मुझे भी,
मगर आह! तक नही करते,

जिनके लिए शायरी करते है, वो देखते तो हैं,
मगर वाह! तक नही करते।।

✍✍
~मोhit

देखो न ज़िन्दगी मेरी कितनी सिमट गई,
भागते थे जिसके पीछे बच्चों की तरह,

और वो पतंग की तरह कट गई।

जिस जगह हम रखें थे उसको,
उस जगह से वो हट गई,

और एक रोज़ वो रोना चाहती थी,
आके वो फिर मुझसे लिपट गई।।

✍✍
~मोhit

मैंने खुद अकेले रहने की सज़ा कुबूल की हैं,
ये मेरा प्यार हैं या मैंने कोई भूल की हैं।
ख़्याल आया है तो रास्ता भी बदल लेंगे,
अभी तलक़ तो मैंने अपनी बहुत ज़िंदगी फ़िज़ूल की हैं।।

ख़ुदा करे कि मैं ज़मी का ही हो जाऊं,
आधी से ज़्यादा अपनी ज़िंदगी मैंने सफ़र में धूल की हैं।
ये शौहरत, ये नाम हमें युही अता नही हुई हैं,
ज़िन्दगी ने हम से भी कई कीमत वसूल की हैं।।

~मोhit

सफ़र क्या, क्या मंज़िल की अब कुछ याद नही,
लोग रुख़सत हुए कब कुछ याद नही।

दिल में हर वक़्त होती हैं कुछ चुंबन,
थी मुझे भी किसी की तलब कुछ याद नही।।

वो चाँद थी, या सितारा या कोई फूल,
या एक सूरत थी अज़ब कुछ याद नही।

काश भूल सकते हम भी अतीत अपना,
याद आये भी तो सब कुछ याद नही।।

ये हक़ीक़त हैं की अहबाब को हम,
याद ही कब थे जो हो अब कुछ याद नही।

याद हैं मुझे यू लोगो का 'मोहित' करना,
की मेरा नाम तो दूर, सूरत भी उनको अब कुछ याद नही।।

✍🏻✍🏻
~मोhit

हर वक़्त माँग में रहने के लिए,
कुछ तो हुनर जरूरी हैं जीने के लिए।

मैंने कई देखें हैं जो मर्द की तरह रहते थे,
अब कठपुतली बन गए दरबार मे रहने के लिए।।

ऐसी मजबूरी तो नही है, की पैदल चालु मैं,
ख़ुद को गर्माता हूँ रफ़्तार में रहने के लिए।

आज बदनामी और शौहरत का ऐसा रिश्ता हैं,
की लोग नंगे हो जाते हैं अख़बार में रहने के लिए।।

~मोhit

जमाना उच्चे लोगो का ही साथ देखता हैं,
ज़मी पे बैठकर ही आसमाँ देखता हैं।

भागोगे जितना उतना गिरने की संभावनाएं होंगी,
संभलकर चलो तुमको सारा जहान देखता हैं।।

~मोhit

कहें भी तो कहें किसको, की हमारा खो गया क्या?
किसी को क्या की हमको, ये हो गया क्या?

खुली आँखों से अब नज़र आता नही कुछ,
सबसे पूछता फिरता हूँ, कि वो गया क्या?

देखो देखो, राहो की उदासी कुछ कह रही है,
रास्ते मे मुसाफ़िर कही खो गया क्या?

ये शहर इस कदर कब सुनसान था भला,
देखो न मेरा दिल भी कही सो गया क्या?

✍🏻✍🏻
~मोhit

हर दिन की तरह वो दिन भी निकल ही जायेगा,
सबको देर ही सही पर मेरी मौत का पैगाम मिल ही जायेगा।

थक जायेंगी धड़कने मेरी भी चलते-चलते,
रूकेंगी साँसे तो शायद मुझे भी आराम मिल ही जायेगा।।

~मोhit
✍🏻✍🏻

ख़बर सुनकर मेरी मौत की, लोग बोलें मत जलाओ इसे शमसान में,

बहुत सी ख़ामियाँ और कुछ ख़ूबियाँ थी इस इंसान में।।

~मोhit
✍🏻✍🏻

मुझपर भी है हज़ारो इल्ज़ाम, मुझसे दूर रहो,
तुम हो जाओगे मेरी ही तरह बदनाम, मुझसे दूर रहो।

तुम ऊगता सूरज, तुम ही तो आने वाला कल हो,
मैं हूँ एक ढलता हुआ शाम, मुझसे दूर रहो।।

सब ही जानते है अभिनेताओं का नाम,
ढूँढ़ो निर्देशक को वहीं हैं गुमनाम, मुझसे दूर रहो।

प्यास बहुत छोटी है तुम्हारी नही सम्भाल पाओगे,
मैं हूँ एक छलकता हुआ जाम, मुझसे दूर रहो।।

~मोhit
✍🏻✍🏻

पलट कर आऊँगा मैं शाखों पर खुशबू लेकर,
खिजाँ की ज़द में हूँ,
मौसम थोड़ा बदलने तो दो।

वही रुतबा फिर से वही जलाल होगा,
अभी वक़्त बुरा है, इसे ज़रा गुज़रने तो दो।।

~मोhit

कहने की कोई ज़रूरत नहीं तुम्हे,
'मोहित' ख़्वामोशियो को बखूबी पढ़ता हैं।

ये इश्क़, मोहब्बत की बाते,
इशारों इशारों में करता हैं।।

~मोhit

सरहाना करता हूँ मैं, आपके जज़्बे का,
पूरा ज़माना ख़रीदना, ये बात किसी से कम नहीं...

पर आप बात कर रही है पूरे ज़माने की,
पर अफ़सोस ये की उस ज़माने से हम नहीं...

~मोhit

ये मक़सद नहीं मेरा की एक शहर को अपना बनाऊँ, 

चाहत तो बस इतनी सी है,

कि ख़रीदने ग़र मक़ान जाऊँ, तो पूरा ज़माना ही ख़रीद लाऊँ !!

~मोhit

ज़माने में रहकर ,ज़माने की बात करता हुँ,
ख्वाबों में नहीं रहता,हक़ की बात करता हुँ।
ज़माने की इन रस्मों से परे है क़िरदार मेरा,
मैं मुश्किल सफ़र में हंसी की बात करता हूँ।।

~मोhit

रास्तों को नई मंज़िलों से मिलाया है मैंने,
ज़िंदगी के उल्फतो को अज्जियत से मिलाया है मैंने।

पतवार को डुबाकर, नाव को चलाया हैं मैंने,
इस किनारे को उस किनारे से मिलाया है मैंने।।

अंधेर नगरी को रौशनी से जलाया है मैंने,
इन काली रातों को जुगनुओं से मिलाया हैं मैंने।

वो कौन और क्या है?
इसका एहसास उन्हें बताया है मैंने,
उनकी गलतफहमी को आइनों से रू-ब-रू कराया हैं मैंने,

मशरुफियत से कुछ फुरसत निकाल कर,
आदमी को आदमी से मिलाया है मैंने।।

~मोhit


तेरी गली का सफर,
याद है मुझे आज भी,

मैं कोई वैज्ञानिक तो नहीं था,
पर मेरी ये खोज लाजवाब थी।

~मोhit

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दिन तो कट जाता है शहर की रौनक में....

तुम बहुत याद आती हो शाम ढल जाने के बाद....

~मोhit

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एक शहर को अपना बनाऊँ, ये मक़सद नहीं...
चाहत तो बस इतनी सी है !!

कि ख़रीदने ग़र मक़ान जाऊँ,
तो पूरा ज़माना ही ख़रीद लाऊँ !!

~मोhit

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फूलों सा बदन और पत्थर सा दिल रखती हैं,
होठों पर मुस्कान और निगाहों में खंज़र रखती हैं।।

बचकर रहना 'मोहित',बड़ी क़ातिल अदा है उसकी,
बुलाती है क़रीब और गले पर तलवार रखती हैं।।

~मोhit

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ना करो चाह , इश्क़-ए-हक़ीक़ की ज़माने का ये दस्तुर बदल गया हैं।

मिलेगी इश्क़-ए-मिज़ाजी तुम्हें आशिक़ों का मिज़ाज बदल गया हैं।।

~मोhit

डूब कर बाहर निकल जाऊं
ऐसी दिल्लगी मैं नहीं करता

निकल जाए चाहे जान भी
पर अपने क़दम पीछे नहीं करता

~मोhit

आंसू की बूंद ठहर गई आंखों में

मैं सारी रात जागा हुँ तेरी यादों में

~मोhit

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कसूर उनका नहीं.,
जो मुझसे दूरियाँ बना लेते हैं..!

रिवाज हैं जमाने में..,
पढ़ी हुई किताबें ना पढ़ने की..!

#मोhit

मैं ग़ज़ल हूँ, गीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हें चाहिये, वो मीत कैसे बनूँ?

ठहरी हुई हैं एक खामोशी मेरे मन मे!
तेरे जीवन का संगीत कैसे बनूँ?

तुम सावन हो, मैं जून का ताप हूँ,
तुम जीवन हो, मैं बस संताप हूँ,

मैं स्वयं हार हूँ ,जीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हे चाहिए वो मीत कैसे बनूँ?

~मोhit

तेरे होने से डरता नही हूँ,
तेरे न होने से डर लगता हैं।

तेरी ममता ही कुछ ऐसी है "माँ",
की हर इंसान तेरे बिना रह ही नही सकता हैं।।

~मोhit

मोहब्बत तो करूँगा, पर बयां नहीं करूंगा,
अब किसी से मोहब्बत की बात नहीं करूंगा।।
बेवज़ह लोग ग़लत समझ लेते हैं मुझे,
अब दिल, दर्द और इश्क़ की बात नहीं करूंगा।।

~मोhit✍✍

यादें है कुछ तुम्हारी,
जो मेरी शायरियों में क़ैद हैं,

वरना अपने दिल और दिमाग से कबका हटा दी मैंने, कसम से।।

~मोhit

यहाँ हर एक दिल व्यथित हैं,
यहाँ सबकी अपनी एक कहानी हैं।

यहाँ हर कोई श्याम हैं,
यहाँ हर मीरा दीवानी हैं।।

इस अज़ब-गज़ब सी दुनियां में,

मीरा का नटवर नागर है,
नागर की राधा रानी है।।

यहाँ हर एक दिल व्यथित हैं,
यहाँ सबकी अपनी एक कहानी हैं।

~मोhit

नशा भी उतर जाता है मेरा, 
एक घुट शराब से।

पिलाना है तो पिलाओ मुझको, 
मगर थोड़ा हिसाब से।।

~मोhit

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खेल जिंदगी के सारे देख सकू,
ऐसी एक निगाह दे,

भटक रहा हु दर-ब-दर,
ए खुदा अब एक पनाह दे..!!

#मोhit

मेरी ज़िन्दगी कुछ नही अब, एक सवाल बन गयी,
उतारा क़लम से मैंने जब कागज़ में तो, एक किताब बन गयी।

समझना तो चाहा कइयों ने मगर समझ न आई,
मुदातो बाद फिर पढ़ा तो, कइयों का ज़वाब बन गयी।।

~मोhit

●●● कोरोना ●●●

शहर और उसकी गलियों में,
ख़ामोशी का मातम छाया है;
हर शख्स अपना होकर भी,
आज न जाने क्यों पराया है..!!

नन्हा सा वायरस जो चीन के,
वुहान शहर से आया है;
पूरी धरती पे उसने,
न जाने कितना आतंक फैलाया है..!!

प्राणी और पशु-पंखीयो को,
इंसान ने आज तक कैद रखा हैं;
मगर आज उन्हें आज़ाद और,
इंसानो को कैद कर रखा है..!!

कैदभरी जिंदगी में,
एक पल भी गुजारना मुश्किल है;
लूडो खेलकर या पूरा दिन सोकर,
जैसे तैसे वक्त को गुजारा है..!!!

काम-काज और सारे धंधे,
ग़रीब लोगों के बंध हो गए है;
उस ग़रीब से जाके पूछो,
कैसे निवाले का इंतजाम हुआ है..!!

जुदाई का दर्द उस माँ को पूछो,
जिस माँ को "कोरोना" हुआ है;
की कैसे पांच महीने के बच्चे को,
उसने अपनी गोद से जुदा किया है..!!

पुलिस वाले रात-दिन जागकर,
हमारे लिये धूप में खड़े रहते है;
हम लोगों के पथ्थर खाकर,
फिर भी हमे "कोरोना" से बचाया हुआ है..!!

अपनी जान जोखम में डालकर,
न जाने कितनों की जान बचाई है;
मौत सर पे दिन रात मंडराती रही,
फिर भी मुस्कुराहट को होठों पे,
सजाया हुआ है..!!

सभी देशों के पीएम,
"कोरोना" से हार मानकर बैठ गये है;
मगर हिंदुस्तान जैसे बड़े मुल्क में,
पीएम ने एक साथ हम सबका हाथ उठवाया है..!!

इस "मोहित" के छोटे से जंग में,
शामिल होकर हमें दिखाना है;
सभी हिन्दुस्तानियों को एक साथ मिलकर,
हिंदुस्तान में फैले इस "कोरोना" को मिलकर हराना है..!!

~मोhit Iyer

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